Friday, July 4, 2008

HINDI ASHTAVADHANI DR. CHEBOLU SESHAGIRI RAO

रह
हिंदुओं के लिए पवित्र नदी गंगा एवं पवित्र तीर्थ स्थान काशी माने जाते हैं । इसी प्रकार दक्षिण गंगा के रूप में प्रसिद्ध पवित्र गोदावरी के तट पर स्थित राजमहेंद्री तेलुगु भाषा के प्रसिद्ध कवियों का जन्म स्थान भी है । आधुनिक युग में नवयुग निर्माता एवं समाज सुधारक वीरेशलिंगम् , श्रीपाद कृष्णमूर्ति शास्त्री एवं मधुनापंतुल सत्यनारायण शास्त्री आदि साहित्यकारों को जन्म देकर राजमहेंद्री और पुनीत हुई । भारत के एक मात्र हिन्दी अष्ठावधानी मेरे प्रिय नानाजी , पथ प्रदर्शक , भक्त एवं आदर्श हिन्दी प्रचारक डॉ.चेबोलु शेषगिरिराव जी को जन्म देकर राजमहेंद्री को ऐतिहासिक एवं पौराणिक गरिमाके साथ हिन्दीसाहित्यिक गरिमा भी मिली ।
ऐसे पुत्र रत्न को जन्म देने वाले मध्यवित्तीय वैश्य परिवार के वेंकठरमणय्य एवं कामराजु दम्पतियों का जन्म धन्य है । निरंतर साहित्य एवं हिन्दी प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में व्यस्त रहना डॉ. राव की महानता है।
डॉ. चेबोलु शेषगिरिराव वर्तमान पीढी के हिन्दी सेवियो में विशिष्ट स्थान रखते हैं । भारत के प्रथम अवाधानी के रूप में वे सुपरिचित हैं । हिन्दी और तेलुगु के छंद -विधान पर डॉ.चेबोलु शेषगिरिराव ने महत्वपूर्ण कार्य किया है । इस शोध - रचना के इस क्षेत्र में नवीनतम उपलब्धियों को स्पष्ट करने का और तुलना के द्वारा भारतीय कविता में छंद -विधान के वैशिष्ट्य को उजागर करने का प्रयास किया गया है । पत्रिका के संपादन कार्य में कई चुनौतियों का सामना कर डॉ.शेषगिरिराव जी ने दक्षिण के आन्ध्रा में हिन्दी के प्रचार के प्रति अपनी समर्पणशीलता का परिचय दिया है । मोतीनाथ , सुंदर सपना , बालाजी चालीसा आदि रचनाओं के प्रणयन द्वारा डॉ.चेबोलु शेषगिरिराव ने अपनी धार्मिकता व संतुलन दृष्टि का परिचय दिया है । आंध्र विश्वविद्यालय की स्नातकोत्तर हिन्दी पाठ्य समिति के सदस्य के रूप में इनकी भूमिका सराहनीय रही । दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, चेन्नै में डॉ.चेबोलु शेषगिरिराव जी का सम्मान विशिष्ठ हिन्दी सेवी के रूप में करने का कारण आप एक कुशल अध्यापक, पत्रकार, अनुसंधाता, अष्ठावधानी, अनुवादक, एवं रचनाकार के रूप में विशिष्ट प्रमाणित होना ही है ।
मनोयोग का मतलब यह है कि किसी विषय पर मन की एकाग्रता रखना । मनोयोग पूर्वक बिना दोष के आठ कामों को एक ही समय करनेवाले को अष्ठावधानी और सौ अथवा बहुत से कामों को एक साथ करनेवाले को शतावधानी कहने की परम्परा है ।
आजकल की युवा पीढी कंप्यूटर पर निर्भर रहकर अपने मनोबल और मनोयोग की शक्ति जुटाने में असमर्थ होती जा रही है। जहाँ एक ओर विज्ञानं के विध्वंसक आविष्कार एवं प्रयोगों की होड़ है , तो दूसरी ओर भारत के मनीषियों द्वारा अपनाए गए योग और साधना के मार्ग फिर से महत्व पाने लगे हैं । इस सन्दर्भ में हमारे जाने पहचाने तथा सभा के हिन्दी प्रचारक डॉ.चेबोलु शेषगिरिराव जी के मनोबल एवं मनोयोग की यह साधना, अत्यन्त स्तुत्य एवं अनुकरणीय है ।
हिन्दी अष्ठावधान एक कला और कौशल है । विज्ञान के नाम से इस कला को नष्ट किया जा रहा है । परन्तु व्यक्तिगत मनोबल की इस कला को अपनी आनेवाली पीढियों तक ले जाने के प्रयास में इस कला के संरक्षक एवं साधक डॉ.शेषगिरिराव जी अभिनंदनीय हैं। दर्शकों को आश्चर्य चकित करनेवाली कला अष्ठावधान चिरंतन रहे। राष्ठ्रभाषा एवं राजभाषा हिन्दी के प्रचार- प्रसार के लिए उनसे जो सहयोग मिल रहा है वह प्रशंसनीय है । डॉ. रावजी का पता- 8-3-3, शेषश्री सौधा, गोदावरी बंड, राजमहेंद्री, आन्ध्र प्रदेश। मोबइल- 919346989107